Retro Movie Review: क्या सुरिया की नई फिल्म दर्शकों की उम्मीदों पर खरी उतरी?

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हर इंसान जीवन में किसी न किसी मकसद की तलाश करता है। किसी को रास्ता दिखाने वाला मिल जाता है, तो कोई खुद राह खोजता है। लेकिन कुछ लोग इस संघर्ष में ही जीवन गुजार देते हैं। निर्देशक कार्तिक सुब्बाराज की नई फिल्म ‘Retro’ भी इसी तरह की खोज की कहानी है। एक अनाथ लड़का, जिसकी पहचान उसके शरीर पर बना त्रिशूल है, अपनी जिंदगी के मकसद को ढूंढता है।

यह फिल्म किसी एक शैली में बंधी नहीं है – यह एक गैंगस्टर ड्रामा है, एक प्रेम कहानी है और साथ ही सामाजिक और राजनीतिक विचारों से भी भरपूर है। इस retro movie review में हम जानेंगे कि क्या यह फिल्म वाकई देखने लायक है या फिर यह अपने ही विचारों के बोझ तले दब गई है।

फिल्म की कहानी: जब त्रिशूल बना किस्मत का निशान

बालपन से गैंगस्टर बनने तक का सफर

पारिवेलकन्नन (सुरिया) को एक गैंगस्टर दंपत्ति – संध्या (स्वस्तिका मुखर्जी) और थिलगन (जोजू जॉर्ज) गोद लेते हैं। हालांकि थिलगन उसे अपनाता नहीं है क्योंकि वह उसका अपना बेटा नहीं है। लेकिन जब पारि अपनी हिंसक प्रतिभा दिखाता है और साबित करता है कि वह एक कुशल हत्यारा बन सकता है, तब थिलगन उसे अपनाता है। यह पूरी घटना पारि और रुक्मिणी (पूजा हेगड़े) के बीच एक भावनात्मक रिश्ता भी शुरू कर देती है।

प्रेम और परिवर्तन की नई शुरुआत

14 साल बाद कोडागु में पारि और रुक्मिणी की मुलाकात होती है। अब पारि एक बदल चुका इंसान है, जो अपनी गैंगस्टर जिंदगी को पीछे छोड़ देना चाहता है। लेकिन क्या अतीत इतनी आसानी से पीछा छोड़ देता है? यही सवाल फिल्म में कई बार उठता है। इस retro movie review में हम देखते हैं कि कैसे प्रेम के जरिए पारि खुद को बदलना चाहता है लेकिन दुनिया उसे बार-बार उसी हिंसक रास्ते पर धकेलती है।

प्रभावशाली शुरुआत, लेकिन उलझी हुई कहानी

Retro Movie Review

15 मिनट का दमदार ओपनिंग सीन

फिल्म की शुरुआत बेहद शानदार है। 15 मिनट का एक सिंगल-शॉट सीन जिसमें ‘Kanima’ गाना बजता है, दर्शकों को पूरी तरह से फिल्म में खींच लेता है। एक्शन, भावनाएं और सिनेमैटोग्राफी – तीनों का मेल इतना अच्छा है कि आप उम्मीद करते हैं कि आगे भी फिल्म इसी स्तर की होगी।

60 के दशक से 90 के दशक तक का सफर

‘Retro’ 1960 के दशक से शुरू होती है, जहां पारि के मूक पिता की मृत्यु होती है, और फिर कहानी 1990 के दशक में जाती है। यह समय यात्रा दर्शाने की कोशिश करती है कि कैसे एक आदमी समय के साथ खुद को बदलता है – लेकिन दुर्भाग्य से यह सफर उतना सहज नहीं लगता।

जब फिल्म भटकने लगती है: विचारों का ओवरलोड

औपनिवेशिकता, लोकतंत्र और धर्म की बातें

फिल्म में कई राजनीतिक और धार्मिक संदर्भ दिए गए हैं – जैसे कृष्ण और रुक्मिणी की कहानी, बुद्ध बनाम कृष्ण की विचारधारा, लोकतंत्र बनाम तानाशाही, और औपनिवेशिक प्रभाव। अगर इन विचारों को सही से बुना जाता तो फिल्म बेहद प्रभावशाली हो सकती थी। लेकिन ये बातें इतनी अधिक और स्पष्ट रूप से कही जाती हैं कि फिल्म उपदेश देने लगती है।

इस retro movie review के अनुसार, फिल्म इस स्तर पर आकर अपने मूल विषय से भटक जाती है और दर्शक उलझ जाते हैं कि फिल्म आखिर कहना क्या चाहती है।

नए किरदारों की भरमार और कथानक की बिखरावट

फिल्म के दूसरे भाग में नए-नए किरदार आते हैं – नासर और विदु जैसे चरित्र जो हास्य का तड़का देने की कोशिश करते हैं, लेकिन यह प्रयोग भी फिल्म को और ज्यादा उलझा देता है।

अभिनय की बात: सुरिया की दमदार मौजूदगी

सुरिया का शानदार अभिनय

इस retro movie review में सुरिया की तारीफ न करना अन्याय होगा। पारिवेलकन्नन के रूप में उन्होंने बेहतरीन भाव-प्रदर्शन किया है। उनका गुस्सा, दर्द, प्रेम और पश्चाताप – हर भावना चेहरे पर साफ झलकती है। फिल्म उन्हीं के दम पर चलती है।

रुक्मिणी के किरदार में गहराई की कमी

पूजा हेगड़े की रुक्मिणी को बुद्ध जैसा शांत और दार्शनिक बताया गया है, लेकिन स्क्रिप्ट उनके किरदार को ठीक से विकसित नहीं कर पाती। नतीजा यह होता है कि दर्शक रुक्मिणी से जुड़ नहीं पाते।

तकनीकी पक्ष और संगीत

संतोष नारायणन का संगीत और तकनीकी गुणवत्ता

फिल्म का संगीत संतोष नारायणन ने दिया है, जो कहानी के कई हिस्सों में जान डालता है। एक्शन सीन्स का बैकग्राउंड स्कोर दमदार है और कैमरा वर्क काफी सिनेमैटिक है। लेकिन जब कहानी ही भटकी हुई हो, तो तकनीकी खूबसूरती भी ज्यादा देर तक असर नहीं छोड़ पाती।

कहानी का अध्यायों में विभाजन

फिल्म को अलग-अलग अध्यायों में दिखाया गया है – Love, Laughter, Rage वगैरह। इनमें Love और Laughter सबसे कमजोर हैं। यहीं से दर्शक फिल्म से कनेक्शन खोने लगते हैं।

निष्कर्ष: एक बड़ी फिल्म, जो अपनी ही बातों में उलझ गई

Retro Movie Review का अंतिम विश्लेषण

‘Retro’ एक ऐसी फिल्म है जिसमें गहराई भी है, दर्शन भी है, और विचारों का भार भी। लेकिन यही इसका सबसे बड़ा दोष है। फिल्म दर्शकों को सिखाने की कोशिश करती है, दिखाने की नहीं। हर किरदार जैसे भाषण देता है।

इस retro movie review का निष्कर्ष यही है कि ‘Retro’ सुरिया के अभिनय के लिए देखी जा सकती है, लेकिन कहानी के मोर्चे पर यह फिल्म निराश करती है।


Retro Movie Review – एक नजर में

  • ⭐ सुरिया का दमदार अभिनय
  • ⭐ शुरुआत का 15 मिनट शानदार
  • ❌ कमजोर लव ट्रैक
  • ❌ विचारों का बोझ
  • ❌ कई जगह कहानी भ्रमित करती है

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