Dalit समाज से आए Justice Gavai बने Chief Justice of India – क्यों है ये ऐतिहासिक?

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14 मई 2025 को राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली में आयोजित एक गरिमामय समारोह में जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने भारत के 52वें Chief Justice of India के रूप में शपथ ली। इस ऐतिहासिक मौके पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ दिलाई। इस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।

जस्टिस गवई न केवल पहले बौद्ध Chief Justice of India हैं, बल्कि वह इस पद को संभालने वाले दूसरे दलित भी हैं। उनका कार्यकाल 23 नवंबर 2025 तक रहेगा। यह नियुक्ति भारत की न्यायिक प्रणाली में विविधता और सामाजिक न्याय के लिए एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।

अमरावती से सर्वोच्च न्यायालय तक का सफर

बचपन और शिक्षा

जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। उनका पालन-पोषण एक ऐसे परिवार में हुआ, जो डॉ. भीमराव अंबेडकर की विचारधारा और बौद्ध धर्म से प्रेरित था। उनके पिता, आर.एस. गवई, एक प्रमुख दलित नेता, सांसद और राज्यपाल रह चुके हैं।

जस्टिस गवई ने अमरावती में अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की और नागपुर स्थित डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने 1985 में वकालत शुरू की और जल्दी ही संवैधानिक, सिविल और प्रशासनिक कानून के विशेषज्ञ बन गए।

न्यायिक सेवा में शुरुआत

उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में असिस्टेंट गवर्नमेंट प्लीडर और एडिशनल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के रूप में कार्य किया। 2003 में उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 2005 में वे स्थायी न्यायाधीश बन गए।

सुप्रीम कोर्ट में योगदान

मई 2019 में जस्टिस गवई को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया गया। उन्होंने अब तक लगभग 700 बेंच में भाग लिया और 300 से अधिक फैसलों की रचना की है।

Chief Justice of India के रूप में ऐतिहासिक फैसले

अनुच्छेद 370 पर फैसला

जस्टिस गवई उस पांच-सदस्यीय संविधान पीठ का हिस्सा थे जिसने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने को वैध ठहराया। यह फैसला भारतीय संविधान के इतिहास में मील का पत्थर माना जाता है।

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम रद्द

उन्होंने उस पीठ का नेतृत्व किया जिसने चुनावी चंदे की पारदर्शिता बढ़ाने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार दिया। यह फैसला लोकतंत्र की पारदर्शिता के लिए महत्वपूर्ण माना गया।

बुलडोजर जस्टिस पर रोक

जस्टिस गवई ने राज्य सरकारों द्वारा मनमानी ढंग से की जा रही “बुलडोजर कार्रवाई” के खिलाफ भी दिशा-निर्देश जारी किए, जिससे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा हुई।

मशहूर मामलों में जमानत

उन्होंने आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को जमानत देने जैसे मामलों में भी निर्णायक भूमिका निभाई।

Chief Justice of India के रूप में सामाजिक महत्व

जस्टिस गवई की नियुक्ति Chief Justice of India के रूप में ऐसे समय पर हुई है जब न्यायपालिका में समावेशिता और विविधता की चर्चा जोरों पर है। वह इस पद को संभालने वाले पहले बौद्ध और दूसरे दलित हैं—पहले थे जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन। यह नियुक्ति हाशिए पर खड़े समुदायों के लिए आशा की किरण मानी जा रही है।

Chief Justice of India की भूमिका और अपेक्षाएँ

Chief Justice of India के रूप में जस्टिस गवई से न्याय प्रणाली में अधिक समानता, पारदर्शिता और संवेदनशीलता लाने की उम्मीद की जा रही है। संविधान की रक्षा, नागरिक अधिकारों का संरक्षण और न्यायिक निष्पक्षता उनकी प्राथमिकताओं में रहेगी।

भारत को मिला एक समर्पित Chief Justice of India

जस्टिस गवई का जीवन, उनके फैसले और उनकी नियुक्ति Chief Justice of India के रूप में भारतीय न्यायपालिका में एक नई दिशा की ओर संकेत देते हैं। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि कठिन परिश्रम, शिक्षा और समर्पण से कोई भी व्यक्ति देश के सर्वोच्च पद तक पहुंच सकता है।

Chief Justice of India के रूप में उनका कार्यकाल न केवल कानूनी फैसलों की दृष्टि से महत्वपूर्ण होगा, बल्कि यह न्यायपालिका की सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान को भी नया आयाम देगा।

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