Jyotiba Phule: प्रतीक गांधी और पत्रलेखा की आने वाली फिल्म ‘फुले’, जो कि महान समाज सुधारक jyotiba phule और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित है, अब विवादों में घिर गई है। फिल्म की रिलीज से कुछ घंटे पहले ही CBFC (सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन) ने इसमें कई बदलाव करने का आदेश दिया है। इस कारण से फिल्म की रिलीज को दो हफ्तों के लिए टाल दिया गया है।
क्या है ‘फुले’ फिल्म का मुद्दा?
जातिवाद और इतिहास के चित्रण पर आपत्ति
फिल्म ‘फुले’ में jyotiba phule और सावित्रीबाई फुले की सामाजिक क्रांति को दिखाया गया है, लेकिन कुछ संवाद और दृश्य ऐसे हैं जिन पर आपत्ति जताई गई है। CBFC ने फिल्म की टीम को यह निर्देश दिया है कि वे “मनु महाराज” के जातिगत व्यवस्था पर आधारित वॉयसओवर को हटाएं।
इसके साथ ही शब्द जैसे कि “मांग”, “महार”, और “पेशवाई” को फिल्म से निकालने का भी आदेश दिया गया है। साथ ही, “झाड़ू लिए आदमी” का दृश्य बदलकर “गोलियां फेंकते लड़कों” से रिप्लेस करने को कहा गया है।
किन बदलावों की मांगी गई है अनुमति?
संवादों को करना होगा संशोधित
CBFC ने कुछ विशेष संवादों को बदलने या हटाने के निर्देश दिए हैं। उदाहरणस्वरूप:
- “जहां क्षुद्रों को… झाड़ू बांधकर चलना चाहिए” को बदलकर “क्या यही हमारी… सबसे दूरी बनाकर रखनी चाहिए” किया जाए।
- “3000 साल पुरानी… गुलामी” को “कई साल पुरानी है” से रिप्लेस करना होगा।
- एक 43 सेकंड का संवाद जिसमें कहा गया है, “यहां 3 एम हैं… और हम वही करने जा रहे हैं”, उसे पूरी तरह से हटाने को कहा गया है।
निर्माताओं से यह भी कहा गया है कि वे फिल्म में दिखाए गए ऐतिहासिक तथ्यों के लिए प्रमाण प्रस्तुत करें।
क्यों बढ़ा विरोध?
ब्राह्मण समुदाय ने जताई आपत्ति
jyotiba phule की यह बायोपिक महाराष्ट्र के ब्राह्मण समुदाय के एक वर्ग द्वारा विरोध का कारण बन गई है। उनका कहना है कि फिल्म में उन्हें नकारात्मक रूप में दर्शाया गया है, जिससे उनकी भावनाएं आहत हो सकती हैं।
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फिल्म में प्रतीक गांधी और पत्रलेखा क्रमशः jyotiba phule और सावित्रीबाई फुले की भूमिका निभा रहे हैं। यह फिल्म भारतीय समाज में जातिवाद, महिला शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह और दलित अधिकारों को लेकर की गई क्रांतिकारी पहल को उजागर करती है।
फुले की ऐतिहासिक भूमिका
कौन थे ज्योतिबा फुले?
jyotiba phule का जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के पुणे शहर में हुआ था। वे एक समाज सुधारक, लेखक, और शिक्षाविद थे। उन्होंने भारत में पहले बालिका विद्यालय की स्थापना की थी और अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को शिक्षिका बनाया था।
jyotiba phule ने न केवल शिक्षा के क्षेत्र में बल्कि जातिगत भेदभाव और महिलाओं के अधिकारों के लिए भी व्यापक आंदोलन चलाया। उनका जीवन आज भी समाज के लिए प्रेरणा है।
फिल्म ‘फुले’ का ट्रेलर और प्रतिक्रिया
ट्रेलर में दिखा ‘सामाजिक क्रांति’ का आह्वान
हाल ही में रिलीज़ हुए ‘फुले’ के ट्रेलर में jyotiba phule और सावित्रीबाई फुले के संघर्ष की झलक साफ नजर आती है। ट्रेलर में यह दर्शाया गया है कि कैसे इन दोनों ने रूढ़िवादी समाज को चुनौती दी और महिलाओं, दलितों और पिछड़ों को समान अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष किया।
सोशल मीडिया पर मिला मिक्स्ड रिस्पॉन्स
जहां कुछ लोग फिल्म की तारीफ कर रहे हैं कि इसने एक जरूरी मुद्दे को उठाया है, वहीं कुछ वर्ग इसके कथानक पर सवाल उठा रहे हैं। हालांकि फिल्म की सिनेमाई गुणवत्ता और कलाकारों के प्रदर्शन को लेकर कोई शिकायत नहीं है।
निर्देशक की प्रतिक्रिया
फिल्म के निर्देशक अनंत महादेवन ने कहा है, “हमारी मंशा किसी समुदाय की भावना को ठेस पहुंचाने की नहीं थी। हमने jyotiba phule के विचारों और उनके योगदान को सच्चाई के साथ दर्शाने की कोशिश की है।”
फिल्म रिलीज की नई तारीख
अब ‘फुले’ दो हफ्तों बाद रिलीज होगी, यानी अनुमानतः अप्रैल के अंतिम सप्ताह में। फिल्म को Zee Studios द्वारा रिलीज किया जाएगा और इसका निर्माण Dancing Shiva Films और Kingsmen Productions ने किया है।
ज्योतिबा फुले के विचार आज भी प्रासंगिक
क्यों ज़रूरी है ऐसी फिल्मों का बनना?
भारत जैसे विविधता भरे देश में jyotiba phule जैसे विचारकों की कहानियां हमें यह याद दिलाती हैं कि सामाजिक न्याय, समानता और शिक्षा का अधिकार हर किसी का है। फिल्म ‘फुले’ इसी जागरूकता को बढ़ाने की दिशा में एक प्रयास है।
इस फिल्म के माध्यम से नई पीढ़ी को jyotiba phule के आदर्शों और उनके संघर्ष से परिचित होने का अवसर मिलेगा। यह फिल्म केवल एक बायोपिक नहीं, बल्कि एक आंदोलन है जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है।
‘फुले’ फिल्म पर उठा विवाद यह दर्शाता है कि भारत में आज भी इतिहास और सामाजिक मुद्दे संवेदनशील विषय हैं। jyotiba phule और सावित्रीबाई फुले जैसे महापुरुषों का जीवन प्रेरणास्रोत है और उनकी कहानियों को सामने लाना अत्यंत आवश्यक है।
फिल्म चाहे देरी से रिलीज हो, लेकिन इसका संदेश मजबूत है — जातिवाद के खिलाफ आवाज, महिला शिक्षा की अलख और समानता का आंदोलन।