भारत और पाकिस्तान के बीच लगातार बढ़ते तनाव के मद्देनज़र केंद्र सरकार ने एक बड़ा सैन्य निर्णय लेते हुए थल सेना प्रमुख को टेरिटोरियल आर्मी (Territorial Army) को सक्रिय करने की अधिकारिक अनुमति दे दी है। यह फैसला टेरिटोरियल आर्मी नियम, 1948 के नियम 33 के अंतर्गत लिया गया है, जिससे भारतीय सेना की नियमित टुकड़ियों को अतिरिक्त समर्थन मिल सकेगा।
इस निर्णय का उद्देश्य सीमावर्ती क्षेत्रों और आंतरिक सुरक्षा क्षेत्रों में तैनात भारतीय सेना को अतिरिक्त शक्ति प्रदान करना है, खासकर ऐसे समय में जब सीमा पर तनाव चरम पर है।
क्या है Territorial Army?
टेरिटोरियल आर्मी भारतीय सेना की एक सहायक इकाई है, जिसमें वे नागरिक शामिल होते हैं जो नियमित रूप से सेना में नहीं रहते लेकिन आवश्यकता पड़ने पर उन्हें सेवा में बुलाया जाता है। ये नागरिक स्वयंसेवक होते हैं जो सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं और राष्ट्रीय आपातकाल या आंतरिक संकट के समय सेवा के लिए तैयार रहते हैं।
Territorial Army की तैनाती
रक्षा मंत्रालय के अनुसार, वर्तमान में टेरिटोरियल आर्मी में 32 इन्फेंट्री बटालियन मौजूद हैं। इनमें से चयनित बटालियन को भारतीय सेना की विभिन्न सैन्य कमानों में तैनात किया जाएगा, जिनमें शामिल हैं:
- साउदर्न कमांड
- ईस्टर्न कमांड
- वेस्टर्न कमांड
- सेंट्रल कमांड
- नॉर्दर्न कमांड
- साउथ वेस्टर्न कमांड
- अंडमान और निकोबार कमांड
- आर्मी ट्रेनिंग कमांड (ARTRAC)
इन सभी तैनातियों का एक मुख्य उद्देश्य सीमा के नजदीकी क्षेत्रों जैसे कि Jaisalmer, जम्मू, पंजाब और कश्मीर क्षेत्रों में सेना की उपस्थिति को मजबूत करना है।
क्यों उठाया गया यह कदम?

पहलगाम में आतंकी हमले के बाद कार्रवाई
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में हुए आतंकी हमले में कई जवानों की जान गई थी। इसके जवाब में भारतीय सशस्त्र बलों ने बुधवार की सुबह पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में स्थित नौ आतंकी ठिकानों पर मिसाइल स्ट्राइक की। इन स्ट्राइक में जैश-ए-मोहम्मद के बहावलपुर स्थित गढ़ और लश्कर-ए-तैयबा के मुरिदके स्थित अड्डे को निशाना बनाया गया।
इन सर्जिकल ऑपरेशनों के बाद पाकिस्तान ने भी जवाबी कार्रवाई की कोशिश की, जिसमें उसने श्रीनगर, जम्मू, पठानकोट, अमृतसर, लुधियाना, आदमपुर, भुज, फालौदी और Jaisalmer जैसे रणनीतिक सैन्य अड्डों को निशाना बनाने की नाकाम कोशिश की।
भारत की जवाबी रणनीति में Jaisalmer की भूमिका
राजस्थान का सीमावर्ती क्षेत्र Jaisalmer, भारत की सामरिक रणनीति में एक अहम स्थान रखता है। यह क्षेत्र न केवल पाकिस्तान की सीमा के करीब है, बल्कि यहां पर भारतीय सेना की कई महत्त्वपूर्ण टुकड़ियाँ और सैन्य प्रतिष्ठान भी स्थित हैं।
Jaisalmer में थल सेना की बख़्तरबंद टुकड़ियों की तैनाती होती है, जो रेगिस्तानी युद्ध के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित हैं। टेरिटोरियल आर्मी की कुछ इकाइयाँ भी जल्द ही Jaisalmer में तैनात की जा सकती हैं ताकि किसी भी संभावित सैन्य हमले का तुरंत जवाब दिया जा सके।
टेरिटोरियल आर्मी का भविष्य में संभावित योगदान
सीमावर्ती क्षेत्रों में चौकसी
जैसे-जैसे पाकिस्तान की तरफ से खतरा बढ़ रहा है, Jaisalmer सहित सभी सीमावर्ती क्षेत्रों में चौकसी बढ़ाई जा रही है। टेरिटोरियल आर्मी की बटालियनें यहां नियमित गश्त करेंगी और यदि आवश्यकता पड़ी तो युद्ध की स्थिति में भी सक्रिय भूमिका निभाएंगी।
आंतरिक सुरक्षा में सहयोग
Jaisalmer और उसके आस-पास के क्षेत्रों में टेरिटोरियल आर्मी न केवल सीमा की निगरानी करेगी, बल्कि नागरिक इलाकों में भी आवश्यकतानुसार सुरक्षा व्यवस्था में सहयोग करेगी। यह उन परिस्थितियों में विशेष रूप से उपयोगी होगा जब आंतरिक स्तर पर आतंकवादियों की घुसपैठ की संभावना हो।
सेना के नियमित जवानों पर दबाव में कमी
भारतीय सेना के मुख्य जवान विभिन्न मोर्चों पर पहले से ही तैनात हैं। टेरिटोरियल आर्मी की तैनाती से उन पर पड़ने वाले दबाव में कमी आएगी और वे अपनी रणनीतिक भूमिका पर अधिक फोकस कर सकेंगे।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
भारत द्वारा की गई जवाबी कार्रवाई और टेरिटोरियल आर्मी की सक्रियता के फैसले पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी निगाहें हैं। कई रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि Jaisalmer और उससे सटे सीमावर्ती क्षेत्रों की तैनाती से भारत ने यह संदेश स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी खतरे से निपटने को पूरी तरह तैयार है।
संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की है, लेकिन भारत के इस सैन्य कदम को देश की संप्रभुता और सुरक्षा के लिए आवश्यक बताया गया है।
Jaisalmer: भविष्य की रणनीति का केंद्र
भारत की रक्षा नीति में Jaisalmer को एक बार फिर से केंद्र में लाया गया है। यहाँ के सैन्य अभ्यास, बंकर निर्माण, और सैटेलाइट मॉनिटरिंग की नई योजनाएँ शुरू की जा रही हैं। Jaisalmer में जल्द ही टेरिटोरियल आर्मी की एक अलग प्रशिक्षण यूनिट भी स्थापित की जा सकती है, जो रेगिस्तानी इलाकों में युद्ध की तकनीकों पर विशेष प्रशिक्षण देगी।